सावन आयेगा कैसे
सावन आयेगा कैसे
सावन आयेगा कैसे
पेड़ है कितने जरूरी ये सबने समझाया हमको।
हमने भी खूब बातें बताई पेड है कितने जरूरी।
पर हर एक को समझना समझाना खूब हुआ।
पर धरती मां की वो करूण पुकार क्या हम समझ पाये।
धरती करती रही बार बार आगाह
पर हम सब खुद गर्ज कहा समझने को तैयार
पेड हम काटते रहे अपना घर हम हरा करते रहे।
पर धरती मां की गोद सूनी करते रहे।
कुछ ना सोचा ना समझा बस बर्बादी का दौर लिखते चले गये हम।
दो रोटी की ख़ातिर
छोड आये हम अपना घर बार
महा नगरों मे रह कर ।
तीन प्लस एक के कमरे को घर अपना बना बैठे।
जहा तक नजर भी ना पहुचे ।
वहाँ तक सब अपना घरौंदा था।
फिर क्यो नियती अपनी बदल गयी।
क्यों हम यो अपने शहर को पराया करते चले गये
अब हाल ये है साहब कुछ पेड़ो के छुरमुट हम बाल्कनी मे लगा बैठे है।
और सारा दरूमदार उन्ही के ऊपर है।
धरती बचाने का
उत्तराखंड का वो बढा सा घर अपना है।
हर गली हर खेत पे अपना सा अपनापन।
वो पेड जो बिना किसी मेहनत से उग जाया करते थे।
हर जर्रा हर कण कण में प्राण वायु का संचार था
यो बिकाऊ नही थी हवा शहरों की
शहरीकरण तो हो गया पर हवा जहरीली हो गयी ।
आओ धरती को बचाते है आओ पेड लगाते हैं।