साथ
साथ
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लगा था साथ चला है कोई
कुछ दूर तक हम साथ ही थे
कुछ बातें थीं.. कुछ यादें थीं
कभी हँसी के ठहाके थे
कभी आँचल में आँसू समेटे थे
थोड़ा हम रूठे.. थोड़ा तुमको मनाया भी
कई काँटों कंकड से गुजरे थे
अलग सही पर साथ थे
एक महक एक आहट
एक साया सा आसपास ही था
एक रूहानी खुशी जो हमें बांधे हुए था
एक मोड़ पे रुक के हमने पूछा...
और कितना है राह बाकी...
और कितना है आसमान बाकी ?'
मूड़ के देखा तो
उसके पाँव के निशान तक न मिले
जाने कब से साथ छूटा था
जाने कब से ख्वाब टूटा था
जाने कब से एक एहसास के साथ जी रहे थे...
लग रहा था साथ चल रहा है कोई।