साड़ी
साड़ी
आज मीठी सी ठण्ड में
गर्मी का एहसास है।
ऐसा लगता है मानो,
कोई बहुत पास है।।
एक बच्ची ख्यालों में
खिलखिला रही है।
इस आँचल में छुप कर
गुदगुदा रही है।।
ये पल्लू जो मैंने
चारों तरफ लपेटा है,
लगता है किसी नें,
आग़ोश में समेटाहै।।
ख्यालों से लौटी तो,
उदास हूँ,सहमी हूँ।
हाँ !!! आज मैं.....
माँ की साड़ी पहने हूँ।।
