रूठा हुआ आईना
रूठा हुआ आईना
था गुमान मुझे अपनी शख्सियत पे,
बेपरवाह थे मेरे निगाहें,
ठुकरा के चला था कुछ अपनो को,
मझधार में उनको रुलाए।
मलाल हे मुझे उन जख्मों का,
जो नासूर बन के उनको तड़पाए,
गुना कुछ ऐसे हुए थे हमसे,
के आज भी मेरा आईना मुझसे रूठा हुआ हे।
आज जागा हूं मदहोशी से,
हर एक आँसुओं का मैं कर्जदार हूं,
ये अंजाम हे वफा से बेवफाई का,
मेरे ईमान का भी में गुनहगार हूं।
किया था गुजारिश अपनी रूह से,
शायद खता हमारी माफ़ हो जाए,
पर गुनाह कुछ ऐसे हुए थे हमसे,
के आज भी मेरा आईना मुझसे रूठा हुआ हे।
ना कदर थी मुझे ए वक्त तेरे वजूद की,
जो आज मैंने दिल से महसूस किया है।
हर गुजरते हुए लम्हों के एहसासों में,
हमने आज को संवारने की कोशिश किया है।
कोशिश तो आज भी करते हैं बहुत,
कहीं ये वक्त हमसे ना छूट जाए,
पर गुनाह कुछ ऐसे हुए थे हमसे,
के आज भी मेरा आईना मुझसे रूठा हुआ हे।