रूप में क्या…
रूप में क्या…
तुम्हारे रूप में क्या छिपा है,
सदियों से खोजा जा रहा है,
निराश मनुज की टोलियाँ हैं,
जिन्हें न मिल सका रूप राज है।
समर्पण के बाद भी कुछ बाकी है,
जिसको अधीर नर खोज रहा है,
आगत पीढ़िया भी ढूढ़ा करेगी,
मन आहत अतृप्त क्यों रहता है।
इस खोज में छणिक शांति क्यों हैं,
अतृप्त भरी गहन प्यास क्यों है,
सदा रूप की खोज जारी रहेगी,
अतृप्त मन की प्यास कैसे बुझेगी।
तेरे रूप का मोहपाश बना रहेगा,
जीवन भर प्रेमी खोजता रहेगा,
पीढ़िया रूप सरिता में नहाती रहेगी,
कुछ पार होंगी बाकी डूब जाएगी।
नदी में मछली प्यास से तड़पती रहेगी,
प्यार जल में कमिलिनी कुम्हलाती रहेंगी।।

