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Kamlesh Maurya

Inspirational

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Kamlesh Maurya

Inspirational

संप्रभुता दांव पर

संप्रभुता दांव पर

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एक नई ज़ोरदार बहस का

करता हूँ आह्वान !

देश की प्रभुता की स्वामिनी संप्रभुता पर ।

होने लगी वीरान सडकें

झुलसती झोपड़ियाँ…. शहरों की गलियों में

रक्त की नालियों में…

बहता हिंदुस्तान ।

क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !

होने लगे दूर इंसान

सम्मान की लड़ाइयाँ… गावों के मुहल्लों में

जाति के कुनबों में मचा घमासान !

करता हूँ आह्वान

क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !

पूर्वत्तर छेत्रों में,

चाय बागानों के झगड़ों ने, अलगावादी नारों ने,

मचाया आतंकवाद


करता हूँ आह्वान

क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !

आदिवासी छेत्रों में

ज़मीन व अधिकार के झमेलों ने

मचाया कत्लेआम !

करता हूँ आह्वान

क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !

अराजकता और आतंक के दाँव पर,

लगी आज देश की संप्रभुता दाँव पर!

धर्म की लड़ाइयाँ है चाल पर, उत्तरी रिमोट की कहर हैं मुंबई पर!

क्यों नित नए-२ जिला राज्य बांटते हैं,

मांग की पूर्ति में कमान थामते हैं

राज्य ‘सुपर’ की बात महान हैं,

लगता लगाम की ही डोर टूट जात हैं

न्याय की तलाश की न हुई पूरी बात हैं,

अब ज़ोरदार बहस की शुरुआत हैं !!


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