संप्रभुता दांव पर
संप्रभुता दांव पर
एक नई ज़ोरदार बहस का
करता हूँ आह्वान !
देश की प्रभुता की स्वामिनी संप्रभुता पर ।
होने लगी वीरान सडकें
झुलसती झोपड़ियाँ…. शहरों की गलियों में
रक्त की नालियों में…
बहता हिंदुस्तान ।
क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !
होने लगे दूर इंसान
सम्मान की लड़ाइयाँ… गावों के मुहल्लों में
जाति के कुनबों में मचा घमासान !
करता हूँ आह्वान
क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !
पूर्वत्तर छेत्रों में,
चाय बागानों के झगड़ों ने, अलगावादी नारों ने,
मचाया आतंकवाद
करता हूँ आह्वान
क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !
आदिवासी छेत्रों में
ज़मीन व अधिकार के झमेलों ने
मचाया कत्लेआम !
करता हूँ आह्वान
क्या कभी रोक पायेगा, इन्हें मेरा विधान !
अराजकता और आतंक के दाँव पर,
लगी आज देश की संप्रभुता दाँव पर!
धर्म की लड़ाइयाँ है चाल पर, उत्तरी रिमोट की कहर हैं मुंबई पर!
क्यों नित नए-२ जिला राज्य बांटते हैं,
मांग की पूर्ति में कमान थामते हैं
राज्य ‘सुपर’ की बात महान हैं,
लगता लगाम की ही डोर टूट जात हैं
न्याय की तलाश की न हुई पूरी बात हैं,
अब ज़ोरदार बहस की शुरुआत हैं !!
