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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Inspirational

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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Inspirational

रुक जा जरा सोच फिर मानव

रुक जा जरा सोच फिर मानव

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मस्तक पर बादल विनाश के,

हाथों में मद प्याला है।

चिथड़े कर डाले विवेक के,

नित शिकार इक बाला है।

कहता प्रगति राह में हूँ मैं,

कृत्य दिखे क्यूँ काला है? 

रुक जा जरा सोच फिर मानव

ढूंढो कहाँ उजाला है?


रक्तिम आँसू रोये धरती,

हवा बनी अब ज्वाला है।

तिल तिल कर मरते वो प्रतिपल,

जिन हाथों ने पाला है।

बिखरी हाथों की रेखाएं,

उजड़ी ज्योतिष शाला है,

रुक जा जरा सोच फिर मानव,

ढूँढो कहाँ उजाला है?


बढ़ती आबादी रोगों की,

लगा उम्र पर ताला है।

नुक्कड़ नुक्कड़ बुच्चर खाना,

हो गयी कम गौशाला है।

स्वार्थ और लालच का रोगी

बना हुआ रखवाला है।

रुक जा जरा सोच फिर मानव,

ढूंढो कहाँ उजाला है?



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