रोशनी पहली सी *
रोशनी पहली सी *
ऐनक उतार कर मेज पे रखने के बाद,
सब कुछ दिख रहा था पहले की तरह।
पसीनों से तर बतर तमाम वदन मेरा,
तरसते तेरे आँचल को पहले की तरह।
रप्तार ए साँस हो जाते तेज़ क्यों!
धडकनों की धक धक कानों तक।
ज़िंदा हूँ मैं,कहते कानों मे बार बार,
मगर तू नहीं साथ पहले की तरह।।
सुबक सुबक के रोता रहता ये सुबह,
अटके आंसूं , श्यामल पलकों पर।
सूरज भी जानता , अनजान सा मगर,
जैसे तू पढ़ लेती थी हमे पहले की तरह।।
सांझ की वो बाती लौ को निहारती,
ख़ुद की जलन को परवाह के बगैर।
फ़िर भी अंधेरा कायम आज तक,
आज भी वो जलती पहले की तरह।।
थक जाता कभी रुकता नहीं मगर
चलता रहता तेरे दिखाए राहों पर।
काश तू होती , हौसलों भरती
कदम डगमगाये जब,पहले की तरह।।
माँ! मेरी रोशनी,तू कहाँ है न मालूम
खोजता भी नहीँ इधर उधर कभी।
तू थी दिल मे , रग रग में , जिगर में
रोशन करती आज भी,पहले की तरह।।
