रोम रोम में कान्हा
रोम रोम में कान्हा
रोम रोम मेरा सखी बन गया है वृंदावन।
जहाँ भी देखूं जिधर भी देखूं दिखे यशोदा नंदन।
बांके बिहारी रसिया मेरे रोम रोम में तेरा दर्शन।
मन तेरा जीवन भी तेरा, तेरा है ये धड़कन।
रोम रोम पे लिख दे मेरे, रसिया रास बिहारी।
माथे पे मदन मोहन लिख दे, पलकों पे पीताम्बर धारी।
नासिका पे नटवर लिख दे, कपोलों पे कृष्ण मुरारी।
अधरों पे अच्युत लिख दे, गर्दन पे गोवर्धन धारी।
कानो में केशव लिख दे,भृकटी पे चार भुजा धारी।
छाती पे तू छलिया लिख दे और कमर पे कन्हैया।
जंघाओं पे जनार्दन लिख दे, उदर पे ऊखल बंधैया।
गालों पर ग्वाल लिख दे, नाभि पे नाग नथैया।
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया।
नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी।
चरणों में चोर चित का, मन में मोर मुकट धारी।
नैनो में तू लिख दे नंदनंदन की सूरत प्यारी।
रोम रोम पे लिख दे मेरे, रसिया रास बिहारी।
जग ने मेरी प्रीत ना जानी सुन ओ मुरलीधारी।
बसा ले मुझकों तू अपने अंतर्मन में हो जाऊं मैं कृष्णप्यारी।
अब ना विलंब करो ओ कान्हा बीत ना जाये उमरिया सारी।
आ जाओ अब राधा के श्याम, मीरा के गोवर्धनधारी।
मुझकों ले लो अपनी शरण में मैं जाऊं तुम पर बलिहारी।