रंग बिरंग़ी मैं
रंग बिरंग़ी मैं
थोड़ी जटिल हूँ मैं
पर हूँ रंगबिरंगी सी
क्या तुम्हे लगी मैं श्वेत सी?
हाँ मैं हूँ उजल चांदनी सी.
कभी यारों के लिए खिलखिलाती
या शरमाई, गुलाबी दुपट्टे सी.
कोई कहे मुझे जब श्याम, हाँ,
कुछ पहलु छिपे हैं मेरे अंधेरों में.
कभी कहे कोई मैं नीली सी
बिखरी हूँ अरमान लिए आसमान में.
हूँ लाल सुर्ख सी चुलबुली
नटखट, निर्भय, निर्मोही सी.
कभी चमकती, सुनहरी सी
पीली नारंगी धूप सी
और कभी तरुण, ताज़ा- हरित बिछी घास सी!