रजोनिवृत्ति की ओर
रजोनिवृत्ति की ओर
लोग कहते हैं मुझे, कुछ अजीब सी हो गई हूँ।
कुछ नहीं दोस्तों बस, थोड़ी मनमौजी सी हो गई हूँ।
याद है मुझे आज भी वो दिन भली-भांति,
तेरे आगमन से शुरू हो गई थी,
मेरे भीतर भी वो नारीत्व की एक कलाकृति।
कितना अटूट रिश्ता रहा हमारा,
तक़रीबन तीस सालों का।
एक अभिन्न मित्र की तरह साथ निभाया तूने,
बिना किसी इंतज़ार के हर माह आ जाता था तू।
हालांकि, एक हल्की सी दर्द की दस्तक भी देता था तू!
अब विदाई का समय आ गया है तो,
मेरे साथ आँख मिचौली खेल रहा है तू,
मुझे खबर है और कुछ नहीं बस,
मुझे छेड़ रहा है तू ।
कभी मेरी मनोदशा को झूला-झुलाकर तो
कभी मुझमें बिजली की तरंगें पैदाकर,
कभी सर्दी में गर्मी तो कभी गर्मी में सर्दी का एहसास दिलाकर,
कभी मेरी त्वचा को एकदम खुश्क बनाकर तो
कभी बिन मांगे मेरा वज़न बढ़ाकर!!
तेरी इन सारी शैतानियों को जान गई हूँ मैं,
मुझसे अलग होने के तेरे ग़म को पहचान गई हूँ मैं।
कुदरत के आगे तो आज भी सब नतमस्तक हैं,
ये सब भी तो उसकी ही दी हुई दस्तक हैं।
हँसते खेलते मुझसे विदा लेना मेरे दोस्त, और ...
जाते जाते एक निशानी भी देते जाना,
मुझे एक परिपक्व नारी बनाते जाना!!
