रजाई
रजाई
रजाई हमसे कहती है
चुपचाप तुम पड़े रहो जो..
जो कुछ सिकी हुई मिले
बस मुस्कुरा कर खा लिया करो
देखो बाहर ठंड कितनी प्रचंड है
जब बाहर चाय ठंडी हो जाती है
अंदर घरवाली गुस्से से गर्म हो जाती है
ये धूप भी कितने आंख मिचौली खेलती है..
लगता है पवन देव की कोई पुरानी सहेली है.!
जब ख्यालों में पतिदेव को समोसे दिखते हैं..
हाय..हाय कितने करारे लगते हैं
जैसे ही उन्होंने समोसे में चटनी लगाई
गलती से जो हाथ रजाई से उनकी बाहर आई..
सपना टूटा तो आंगन से एक आवाज आई
क्या तुमने अपने लिए चाय है बनाई..?