हर रोज कुछ नया सीखने की कोशिश करती हूं। मन की भावनाओं को शब्दों में ढ़ालती, जो लोग मन की कह नहीं पाते उसे कोरे कागज पर कुछ ऐसे उतारती हूं✍️
दूसरों की ख्वाहिशों को भूलकर काश मैं भी थोड़ा बोरोप्लस लगाती. दूसरों की ख्वाहिशों को भूलकर काश मैं भी थोड़ा बोरोप्लस लगाती.
जब बाहर चाय ठंडी हो जाती है अंदर घरवाली गुस्से से गर्म हो जाती है जब बाहर चाय ठंडी हो जाती है अंदर घरवाली गुस्से से गर्म हो जाती है
रिश्ते मौसम जैसे.. ये रिश्ते मौसम जैसे क्यों हो गए ? रिश्ते मौसम जैसे.. ये रिश्ते मौसम जैसे क्यों हो गए ?
इसलिए दुआओं के साथ नजर का टीका भी लगाती है। इसलिए दुआओं के साथ नजर का टीका भी लगाती है।