रिश्तों की पोटली
रिश्तों की पोटली
मैं एक औरत
बेटी-बहन, पत्नी- माँ
मायके से ससुराल का सफर
दहेज में बँध जाती है रिश्तों की पोटली।
हर रिश्ता
निभाना मेरा कर्तव्य
दिल से या मज़बूरी से
पर ससुराल में यह केवल मेरा फर्ज़।
हर खुशी
जुड़ जाती है मुझसे
हर किसी का ख्याल रखना
सबको मोहक लगती है मेरी यह अदा।
नाराज
न हो कोई कभी
करती रहती हूँ यही प्रयास
कर जाती हूँ अपनी इच्छाओं की खुदकशी।
खुश रहती हूँ
मेरा परिवार खुश है
हर रिश्ता पनप रहा है खुशी से
मेरे संस्कार मेरी पोटली मज़बूत करते।
रिश्तों की पोटली
है घर की आन- बान
इसी ने बढ़ाई परिवार की शान
सबको मिलती यहाँ इज्ज़त व सम्मान।
पर,रिश्तों की पोटली
उठाना नहीं है इतना आसान
समझौतों की बिसात पर चलना
तभी हर रिश्ता निभ जाता है दिल से।
दोस्तो
परिवार है तो
रिश्तें भी हैं अनगिनित
निभाओ दिल से होकर मद मस्त।