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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

रिश्तों की कोई मर्यादा नहीं रही

रिश्तों की कोई मर्यादा नहीं रही

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रिश्तों की 

आज के संदर्भ में 

कोई मर्यादा नहीं रही 

जो जितना है शरीफ 

वह उतनी मार खा रहा 

घर में भी राज है 


गुंडे और बदमाशों का 

शराफत का ढोंग करके 

वह खुद को समझ रहा 

होशियार लेकिन 

अपने ही घर को तबाह कर 

समाज में अपनी छवि 

निखार रहा 


वह पैसे को 

हवा में एक गेंद की 

तरह उछाल रहा 

उसे नहीं पता कि 

आने वाला कल शायद 

आज जैसा न हो 

यह जो वह गेंद उछाल रहा 

हो सकता है कि 

वह उसके हाथों में कभी 

वापिस ही न आये 


जिन परिवार के सदस्यों को 

वह पसंद नहीं कर रहा 

उन्हें आग लगा रहा 

उन्हें प्रताड़ित करके मार 

रहा 

उन्हें घर के कोने में 

पटक रहा 


इस तरह का व्यवहार 

क्षणिक भौतिक सुख तो 

दे सकता है लेकिन 

अंततः इसके परिणाम घातक हैं लेकिन 

आज का मानव 

इतना स्वार्थी बन चुका है कि 

उसे यह सब करने में 

कोई बुराई नजर नहीं आती 


इस तरह के हिंसक व्यक्तियों से 

यह समाज भर चुका है 

यह दुनिया एक जंगली 

पशुओं का बसेरा बन 

चुकी है 

घर नाम का कोई 

स्थान शायद बचा नहीं 

इस संसार में 


ऐसे ही चलता रहा तो 

वह दिन दूर नहीं कि 

मानव सौ प्रतिशत संवेदना शून्य 

हो जायेगा।


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