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DR. RICHA SHARMA

Abstract

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DR. RICHA SHARMA

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रिश्तों की खोखली पोटली

रिश्तों की खोखली पोटली

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रिश्तों की पोटली कहीं हो न जाए खोखली,

मैंने तो हर रिश्ते में मिठास ऐसी घोल ली।


अपनों की ही खातिर मुसीबत हर बार मोल ली,

खुद से ही ऐसी जंग मैंने तो बस छेड़ ली।


भरा-पूरा रहे हमारा परिवार चाहती हूँ मैं हर बार।

नित दिन हर सदस्य में छिड़ जाते हैं

जब आपसी शब्दों के वार।


तब कभी-कभी जाती हूँ मैं भी आखिर हिम्मत हार

लगने लगता है तब खुद का जीवन भी बेकार।


रिश्तों की पोटली को हमें ही तो बचाना है

नई पीढ़ी को सद्व्यवहार सिखाना है।


पुरानी संस्कृति व संस्कारों पर चलते जाना है

वास्तव में मानव धर्म हम सभी को निभाना है।


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