रिश्ते
रिश्ते
दरख़्त-ए-जिन्दगी में
वक्त की शाखों से
लम्हा-लम्हा टूटे पत्तों से
होते खामोश रिश्ते
बिखरते - सिमटते
ऊन से उलझते से।
रिश्तें हैं अब रिसते से।
गीले-सीले मन की
चौखट पर.हैं खड़े
यक्ष -प्रश्न से तने
हमेशा निरुत्तर से।
होते खोखले रिश्ते
रेत के घरोंदे से,
कण-कण बिखरते से
रिश्तें हैं अब रिसते से।
मीरा सी पीर ले
राधा का दिल चीर ले।
दोनों ही कुछ पूरे से
दोनों कुछ अधूरे से।
क्या,सही? कौन सही ?
सारे रिश्ते, प्रश्नों में
हमेशा उलझते से।
रिश्तें हैं अब रिसते से।
छोटी- छोटी बात पर
कभी बिना बात पर।
लगते है अपने,
कभी वो पराये से।
दिन-रात की तरह
लगते अन्दाज़-ए-बयाँ
रिश्तों के बदलते से।
रिश्ते हैं, रोज रिसते से।
त्रिकोण, समकोण,
किताब में पढ़े बहुकोण।
पढ़े नहीं जीवन के
हमने कभी दृष्टिकोण।
शून्य - स्वरों में, शून्यालाप
परस्पर करते से
रिश्तें लगते रिसते से।