बेटी
बेटी
सत-युग, त्रेता, द्वापर बीता,
अब, कल-युग भी है, बीता।
इक्कीसवीं सदी में है आया
बेटी युग का नया दौर आया।
बेटी शक्तिस्वरुपा दुर्गा काली है,
बेटी ही लक्ष्मी और सरस्वती है।
बेटी सीता, सावित्री, अनुसुइया
और बेटी ही,रानी लक्ष्मी बाई है।
बेटी है, वैदिक काल की गार्गी,
मैत्रेय,लोपमुद्रा,शचि औ' घोषा।
बेटी भोर की उजली किरण है,
स्वप्निल पंखों से छूती गगन है।
बेटी इस युग में, कोई बोझ नहीं,
सुत-सुता में,अब कोई भेद नहीं।
बेटों से बढ़के,जिम्मेदारी समझें,
मन की भाषा बिन बोले समझें।
आँगन में पीपल तरु सी होती है,
हरदम,आक्सीजन बेटी देती है।
माँ के दिल की धड़कन होती है,
लवंगलता सी प्यारी ये होती हैं।
पुण्य का प्रसाद होती ये बेटियाँ,
हीरे-मोती जैसी होती ये बेटियाँ।
किसी से कम नहीं होतीं बेटियाँ,
धड़कन में समायी होतीं बेटियाँ।
मन की उलझन को सुलझाती है,
ख्वाबों में, रंग भरना सिखलाती है।
जीवन-सारंग की वो, कलकल है,
बेटी तो,मलय सुगंधित हलचल है।
अशोका सुंदरी, शिवसुता शिवाला है,
प्रतीक मौर्यशासकों की श्रद्धा का है।
कर्णेश्वरधाम, कंसुआ कोटा, भारत में,
बेटी का विश्व में एक ही देवालय है।