मृत्यु
मृत्यु
मृत्यु सच है, शाश्वत, चिरन्तर,
उत्सव है यह तो जीवन का।
सत्य उजागर यह ,गीता में,
बनी, मृत्यु उद्गम जीवन का।
मृत्यु किसी की जब होती है,
कौन बात उसकी करता है ?
सब रोते अपने मतलब से,
कौन मृत्यु का दुख हरता है ?
करते उत्सव सी तैयारी,
कमी नहीं कुछ रहने देते।
कमी रहे जीते जी चाहे,
अब रिजर्व कमरे कर देते।
मैन्यू बनता, लंच,डिनर का,
संग चाय के नाश्ता होता।
अजब तमाशा, दिखता कैसा ?
घर मे ज्यों उत्सव सा होता।
