मच्छर
मच्छर
कोमल कृष्ण-वर्णीय
एकलिंगी.....
प्राण सहेजे झिलमिलाते,
सभी जगह तुम मिल जाते
फिर चाहे.....
आलय हो या देवालय ।
छः पैर,सैंतालीस दाँत
बिन-हड्डी का.......
छोड़ आइसलैंड,
सारे जग में मिल जाता
कहा इसे ही.......
मसक,मसा,दंशक जाता ।
बिना इजाज़त पहुँचे
सभी जगह
जोड़े रिश्ते-दारी ,
भेद नहीं ये जाने
रुप-कुरुप का
प्रेम जन-जन से माने ।
प्रेमी मानो लगता कोई
पूर्व-जन्म का
कर पहचान मिल जाता,
आलिंगनबद्ध हो
चुम्बन
मानो जड़ जाता ।
नींद में जब सो जाते
छन्न से
ख्वाब कोई टूटे
भिनभिनाते गीत गाते,
प्रेमालिंगन
जब भी ये कर जाते ।
डेंगू ,जीका,चिकनगुनिया
देन तुम्हारी
जाने हम सब इसको,
पर फिर भी कैसे
मारें तुमको
खून मेरा भी है तुम में।
प्रत्येक वर्ष मनाते
बीस अगस्त को
अन्तरराष्ट्रीय-मच्छर-दिवस
पर इच्छा-आकाँक्षाओं के
पाल लारवा
क्यों हो रहे हम मच्छर।
