STORYMIRROR

Saurabh kumar thakur

Crime

3  

Saurabh kumar thakur

Crime

रहम

रहम

1 min
266

क्यों रौंदते हो मुझे

मैं तुम्हारी बहु, बेटी ही हूँ।

मैं भी तुम्हारी तरह ही 

एक साधारण सी इंसान हूँ।

क्यों तुम मुझे शर्मसार करते हो

क्यों तुम मेरा जीवन बर्बाद करते हो।

क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा,

जो मेरे साथ तुम अन्याय करते हो।

मत भूलना की तुम भी एक इंसान हो।

तो फिर क्यों हैवान बनने को तुले हो।

क्यों तुम आज बहन की प्यार,

और माँ की ममता को भूले हो।

अरे तुम ये करने से पहले 

थोड़ा सा तो शर्म करो।

मैं भी एक इंसान ही हूँ, मुझ पर

थोड़ा सा तो रहम करो।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Crime