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Shivanand Chaubey

Inspirational

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Shivanand Chaubey

Inspirational

रहें जो यूँ ही

रहें जो यूँ ही

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रहे जो यूँ ही उनकी भाव भंगिमा निहारते

स्वयं को उनके आंचलों में खुद को हम संवारते

प्रत्येक गीत में बस उनके नाम को पुकारते

प्रणय निवेदनो में वक्त व्यर्थ ही गुजारते

इसके आगे भी है अपने कर्म क्यों रुके हुए

है आज शर्म से क्यों सर ये शर्म से झुके हुए ,

है रो रही क्यों वेदनाएँ खुद के यूँ ही हाल पे

है जमाना चुप ये क्यों मेरे पुछे हुए सवाल पे ,

धरा भी धन्य हो गयी श्रवण सी अपने लाल पे

लिख दिया है नाम जिसने काल के कपाल पे ,

उठो दो तोड़ बंधनों को मोह को दो त्याग अब

भला न होगा देश का रहे जो खुद को उनपे वारते

सिंह सा जो साहसी था आज दास हो गया

उनके मोह पाश में अस्तित्व को वो खो गया ,

भ्रमर सा वो फंसा हुआ कमलिनियों के मध्य में

तड़प रहा पपीहे सा वो उनके बीच लक्ष्य में ,

वो उनके चाँदनी सी है स्वरुप पे फ़िदा हुआ

भुलाकर के अस्तित्व को स्वयं से भी जुदा हुआ ,

तू तोड़ क्यों न पा रहा है उनके प्रेमजाल को

तू जाग जा देश को है अब जगाने की जरूरते

धरा भी मन में आस ले विश्वास ले कहे यही

बदले तू भूगोल को रहे न नफरतें कही ,

तू गीत शाम आठों याम पे यूँ खुद को वार दे

जाग जा इस देश तस्वीर को संवार दे ,

झुका के अपने सर को उनसे प्रेम को क्यों मांगते


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