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Neetu Lahoty

Abstract

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Neetu Lahoty

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रेस नहीं है ज़िंदगी

रेस नहीं है ज़िंदगी

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कभी तो रुक जा तू भी मेरे इंतज़ार में

क्न्यो ज़िंदगी को रेस बनाये फिरता है

 

दो पल को ही सही उतर जा मेरी निगाह में.. 

क्यों मेरे अहसासों से अनजान बना फिरता है


चाहिये क्या तुझे ज़िंदगी से इतना तो बता जा 

क्यों बौराया सा फिरता है, आ रख दूँ अपने लब तेरे 


लबों पर क्यों इस ख़ामोशी से डर जाया करता है 

कैसे समझाऊँ तुझे अपने लड़खड़ाते हुए जज़्बात।


तू तो हर चीज़ को दुनियाँ की नज़रों से तौलता है.. 

बैठ तो सही थोड़ा थम के क्यों ज़िंदगी को रेस बनाये फिरता है। 


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