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Shravani Balasaheb Sul

Abstract

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Shravani Balasaheb Sul

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रात एक किताब हैं

रात एक किताब हैं

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रात एक किताब है

एक बेहिसाब हिसाब है

कल्पनाओं के समंदर

उन किनारों का ख्वाब है


सपनों की छन छन पाजेब पहन के

उड़ाती हैं रात होश-ओ-हवास जहन के

कितना भी कैद कर लो सच्चाई की कैद में 

बेपर्दा कर हसरते खोल देती द्वार मन के 


दिल की बेरहम हर जिद इसके सामने नमति हैं 

मन के विशाल आँगन में रात मस्ती से झूमती हैं 

जितने भी बयां करो जमाने के सच मगर

आखिर में दुनिया दिल की यही कही घूमती हैं 


ढूँढती हैं बहाने की कुछ तो बात होती रहे

खुद से ना खामोशी हो तो मुलाकात होती रहे

मंजूर हैं जुदाई जमाने से बस खुदसे न दूरी हो

दिल की जमी भिगोती रहे ऐसी बरसात होती रहे 


रात एक किताब है.....



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