STORYMIRROR

Shashank Shukla

Romance

2  

Shashank Shukla

Romance

रात और अनकही कहानी

रात और अनकही कहानी

1 min
6.7K


गर्मियों की रात और पूरा मुहल्ला छत पे,

बस एक चेहरा नहीं आया..

पुराने दौर की तरह वो अब गर्मियों की रात चलने वाली

हल्की भीनी हवा में आने से डरती है शायद,

पिघलता चाँद उसे चांदनी से न सजा दे

वो इश्क़ की इस बात से डरती है शायद..

बिना खिड़की का वो बंद अकेला कमरा

जिसमें मेरी यादों का जेल बन कर वो आज भी पहरेदारी कर रही है,

रोशनदान में भी बस इतनी सी जगह

की चांदनी ज़रा सी आ जाए और उसे नींद के झूले में सुला दे..

ज़माने के सामने वो ताल्लुक टूटने का ज़िक्र होते नहीं देख सकती..

वो चाहती है की उसके खिलाफ मेरे नाम का फरमान अब कभी न निकले,

ज़मानत ज़ब्त करके वो मेरी रिहाई होने नहीं देती..

और मैं आज भी कभी रात, कभी दोपहर में

किसी न किसी बहाने से छत पे चला जाता हूँ -

शायद यही रंग है उसका, शायद इतना ही संग है उसका..

सुनो कुछ दूर और साथ निभा लो पास ही किनारा है...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance