राष्ट्रप्रेम गीत (9)
राष्ट्रप्रेम गीत (9)
छप्पन इंची सीना चहिए,
आ मैदान में लड़ने को।
मरे मराये क्या लड़ पाओ,
जाओ पेट को भरने को।।
धन - पैसा और पेट भरा हो,
तब ही सोचो लड़ने को।
तुम्हारी कोई औकात नहीं है,
गाल बजाओ हंसने को।।
आर - पार की होगी रण में,
न बच पाओ भागने को।
जाल में अपने खुद फंस जाओ,
हल ना कोई निकलने को।।
मार - मार हम जमी गड़ा दे,
न पीड़ी तुम बढ़ने को।
खत्म तुम्हारा देश ही होगा,
भू का भार उतरने को।।
भला जो चाहो अपने जन का,
भागो रहो न मरने को।
एक बार समझाये तुमको,
फिर अवसर न भागने को।।
