राष्ट्रप्रेम गीत (29)
राष्ट्रप्रेम गीत (29)
सौ अपराध माफ हम करते,
उससे ऊपर नाहीं ।
इसके बाद हम चक्र छोड़ते ,
काटे गर्दन जाँहीं।।
सौ अपराध हुए तुम पूरे ,
अब छिनको तुम नाहीं।
एक भी गलती आगे कर दी ,
सिर धड़ में फिर नाहीं ॥
अपना समझके छोड़ रहे हम ,
तुम समझे ही नाहीं।
गफलत से अब जागो प्यारे ,
अब गलती हो नाहीं।।
सौ - सौ गलती करके कहते ,
हम गलती है नाहीं।
आंख फूट गई पागल भय का ,
जो दिखता तुम नाहीं।।
आओ सामने छुपे रहो ना ,
तुम बचना अब नाहीं।
चक्र हमारा छूट गया है ,
वो देखेगा जाहीं।।