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Ajay Singla

Abstract Classics

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Ajay Singla

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रामयण ३८ लंका दहन

रामयण ३८ लंका दहन

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रावण ने अक्षयकुमार को भेजा

साथ में उसके योद्धा बहुत थे

वृक्ष से मारा अक्षयकुमार को

हनुमान गरजे बहुत जोर से।


पुत्र वध सुना क्रोध आ गया

तब फिर मेघनाथ को भेजा

मारना ना उसे, बाँध लाना बस

सेना साथ बहुत सी ले जा।


हनुमान कटकटाये और गरजे

एक बड़ा वृक्ष उखाड़ा

रथ से उस को कर दिया पैदल

जब वो मेघनाथ को मारा।


लग रहा जैसे दो हाथी हों 

एक दूजे पर वार करें कई

हनुमान मारें एक घूँसा

मेघनाथ को मूर्छा आ गयी।


माया से भी जब जीत न पाया

गरजा वो क्रोध में भरकर

ब्रह्नास्त्र निकाला उसने

सन्धान किया हनुमान के ऊपर।


मिट जाये न अस्त्र की महिमा

ब्रह्मास्त्र का मान रखें वो

लगा अस्त्र मूर्छा आ गयी

नागपाश में बंध गए थे वो।


रावण की सभा में जब वो आये

डर न कोई, निर्भय खड़े थे

कपि देखें, हाथ जोड़े खड़े 

दिगपाल, देवता वहां बड़े थे।


रावण पूछे, क्यों रे बन्दर

कौन है तू, नाथ कौन तेरा

वन को उजाड़ा क्यों है तुमने 

सुना नहीं क्या, यश तुमने मेरा।


कपि कहें, चराचर के स्वामी

रामचंद्र जी नाथ हैं मेरे

जानूं मैं तेरी सब गाथा

किस्से जो प्रभुता के हैं तेरे।


सहस्रबाहु ने तुझे हराया

बालि ने भी तुम्हें पछाड़ा

भूख लगी फल खाये मैंने

राक्षस मारें, मैंने भी मारा।


मैं विनती करूँ, हे अभिमानी

वैर न कर तू रामचंद्र से

जानकी जी को वापिस कर दे

राम विनम्र बहुत अंदर से।


रावण बोले लगता है अब

मृत्यु निकट आयी है तेरी

वचन ये बोले हनुमान जी

ये तेरी है, नही ये मेरी।


इतना सुनते ही क्रुद्ध हुआ दुष्ट

कहे, मूर्ख को शीघ्र मार दो

तभी वहां विभीषण आये

कहें दूत ये, कोई और दंड दो।


रावण सोचे कपि प्रेम पूंछ में

पूंछ में इसकी आग लगाएं

मन में मुस्काएं हनुमान जी

पूंछ को वो बढ़ाते जाएं।


नगर का सारा तेल ख़त्म हुआ

कपि ने इतनी पूंछ बढ़ाई 

नगरवासी पैरों से मारें

पूंछ में फिर थी आग लगाई।


छोटे रूप में आ गए थे कपि

चले पवन, आग भड़कावे

अटारियों पर वो जा चढ़े थे

अट्टाहस कर शरीर बढ़ावें।


सारा नगर जला दिया कपि ने

छोड़ा बस विभीषण का घर

समुन्दर में कूद के पूंछ बुझाई

जानकी पास गए, छोटा रूप धर।


बोले माता कोई चिन्ह दो मुझे

जैसे राम ने दिया था मुझको

चूड़ामणि उतार के दी तब

सीता ने ये कहा फिर उनको।


संकट मेरा अब दूर करो तुम

कहना राम से, जब हो मिलना

एक महीने में न आये तो

जीता मुझे वो पाए न।


समुन्द्र लांघा उस और आ गए

देखकर खुश हुए बन्दर सब

मुख पर तेज देखकर सोचा

राम का काम पूरा हुआ अब।


सब लोग चले मधुवन में

वहां पर थे मधुर फल खाये

रखवालों को मारा, भगा दिया

सुग्रीव को आकर सर नवाये।


 

 










 





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