राजा बहराम और सुन्दरी दिलाराम
राजा बहराम और सुन्दरी दिलाराम


राजा बहराम गुर के संग,
होती थी सुन्दरी दिलाराम,
जो जानी जाती थी अपने संगीत से,
क्योंकि वह जीवन में भरता था नये रँग।
दिलाराम की धुन में खो जाते थे सब,
थम जाती थी जगह जहाँ खुलते उसके लब,
उसके सुनहरे बाल जब उड़ते हवा में,
थम जाते थे चलते राहगीरों के कदम तब।
राजा किया करता था जंगल में हिरणों का शिकार,
उसे मिला एक ऐसा संगीत जो था सबसे ख़ास,
उस दिन जब संगीत का उसने किया अनुभव,
तब ज़िन्दगी उसकी बदल गई मानो पा लिया रब।
उस खूबसूरत गुलाम ने था उसको लुभाया,
उसके संगीत से राजा का दिल मचलाया,
दिलाराम की मधुर आवाज़ थी सबसे प्यारी,
उसका संगीत सुन के लगे सारी दुनिया न्यारी।
बहराम गुर को दिखा हिरण का झुंड,
जो दिलाराम के संगीत की सुन रहे थे धुन,
सुंदर गुलाम ने गाया गाना दिल लुभाने वाला,
सब कुछ भूल बैठा जिसे सुन झुंड मतवाला।
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उसकी धुन में खो गए हर तरफ हिरण,
भूल गए खाना-पीना जैसे कोई निकली किरण,
संगीत की वो अनूठी मिठास बरसाती थी,
जिसे सुन हर किसी को मस्ती छाती थी।
जैसे जब नशे में होता है कोई इंसान,
और सब कुछ भूल जाता है दुनिया ज़हान,
वैसे ही भूल गए थे हिरण अपनी जगह,
जब दिलाराम के संगीत ने था जादू किया।
दिलाराम के संगीत पर थे सब मोहित,
जिसने भुला दिया था सारी दुनिया को,
उसकी धुन से महक उठे थे सब जंगलवासी,
मानो खुद भगवान आकर बन बैठे निवासी।
बहराम गुर को भी जब खो जाने का अनुभव हुया,
तो उसे जीवन का सबसे बड़ा तोहफा मिला,
उसकी ज़िन्दगी उस दिन से ही बदल गई,
जब उस पर संगीत की भाषा चढ़ गई।
तब जंगलों का शिकार उसने खारिज किया,
और संगीत से एक नया रिश्ता जोड़ लिया,
संगीत होता ही इतना मधुर और महान है,
कि सारे लोग उसका करते सम्मान हैं।।