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Aayushi Kumari

Romance

4.6  

Aayushi Kumari

Romance

प्यार नहीं आकर्षण था

प्यार नहीं आकर्षण था

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प्यारा सा केवल लगता था।

जब बात समझ ये आई मुझ को,

तुझ को समझाने बैठी मैं,

कि प्यार नहीं आकर्षण है,

गहरी यारी का दर्पण है।

मगर जज़्बात समझ न पाया तू,

बेमतलब ही भरमाया तू,

पागलपन को ही प्यार कहा,

पावन रिश्ता बदकार दिया।।


माना मैं हूं कमज़ोर ज़रा,

रिश्ते-नातो की बूझ नहीं पर,

ये रिश्ता मैंने निभाया था,

बेशकिमती थे जो पल,

उन पल को भी संवारा था।

हाँ प्यार संभाल न पाई मैं

तेरे बदले उन रूपों को

इक‌ क्षण में जान न पाई मैं।।


इतनी रात किधर निकली?

इतनी रात को क्यूं लौटी?

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p>किसके साथ तू बैठी थी?

थी किसके साथ तू घूम रही?

अरे कौन था वो लड़का जिसकी

बातों पर थी तुम फूट हँसी ?

बस... सवालात के हवालात में

फूट-फूटकर रोई थी,

चैन सुकून के आलम में इक

पल भी न मैं सोई थी।।


हर दफा रवैये पे अपने तूने

मांगी है माफ़ी, हर दफा रवैये

पे तेरे मैंने बक्शी है माफ़ी।

पर बार-बार तू बेकरार वही

ग़लती दोहरा जाता था,

हर शाम-सवेरे मुझको बेबस,

तन्हाई ने आंका था।।


थक चुकी हूं, टूट चुकी हूं इस

बेतुक अंजान सफ़र में,

रो-रो कर आँसू भी सूखे

दफ़न गए अदृश्य कफ़न में।।


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