पवन
पवन


पवन ऐसी बहे मेरे द्वार,लेकर आये खुशियाँ आपार।
पूर्व, पश्चिम, उत्तर या हो दक्षिण दिशा,लेकर आये सुनहरे दिन, भीनी निशा।
जब चले चाल मस्तानी,झूमे सारे , छोड़ कर ग्लानि ।
आये जब गुर्राती वो,जागे जग मै, जो रहे हो सो।
इठलाती, झूमती रहती घूमती,थल और गगन को चूमती।
जहाँ मिले पुष्प, सुगन्धित करती संसार,झूमती सृष्टि सारी, संग तेरे बारम्बार।
न दिखे कभी, पर दिलाती एहसास, भेद न करे किसी से,
जाती सबके पास झंकृत करे जो ह्रदय के तार,पवन ऐसी बहे मेरे द्वार।