पूर्णिमा की रात
पूर्णिमा की रात
पूर्णिमा की रात में
चलों कुछ देर साथ चलें
कहीं पर साथ बैठें और
एक-दूसरे से बात करें ।
तन और मन दोनों से ही
अपने इस अधूरे रिश्ते को स्वीकार करें
पलको के किनारों पर झूल रही स्मृतियों को
चलो एकबार फिर से याद करें ।
पूर्णिमा के इस चमकीले उजालों में
सर्दियों की इन सर्द रातों में
साथ गुजारे उन बेशकीमती लम्हों को
हम-दोनों मिलकर दिल में आबाद करें ।

