पूछ लिया करते हैं
पूछ लिया करते हैं
जब अल्फाज़ धरने पर रहे,
मायूसी भी ऐसा ही कहे,
ख़ामोशी क्या कहती है,
पूछ लिया करते हैं।
आँखें भी ना बयाँ कर रही हों,
अश्क़ शैतानी किया कर रही हों,
तब रूह क्या सहती है,
पूछ लिया करते हैं।
जब पांव हरकतें करने से डरें,
बस सहम-सहम कर चला करें,
वह खौफ़ कहाँ रहती है,
पूछ लिया करते हैं।
जब पत्ते नींचे झड़ रही हों,
और इधर-उधर बिखर रही हों,
दरखतें क्या सहती हैं,
पूछ लिया करते हैं।
जब शब-ए-फिराक होने को हो,
साँसे भी मुक़म्मल होने को हो,
ज़िस्म क्या सहती है,
पूछ लिया करते हैं।
जब रस्म-ए-दूरी छाने को हो,
बस यादें ही सतानें को हो,
सुकूँ कहाँ रहती हैं,
पूछ लिया करते हैं।
