पुष्प की अभिलाषा
पुष्प की अभिलाषा
2 दिन की उमरे हयात है
कली से फूल बनकर
डाल पर इतराता हूं
चहुं ओर सुवास, बिखेरता
खुशदिली से मुसकाता हूं
हर दिल अजीज बनकर
मैं सब को लुभाता हूं
2 दिन खुलकर मुस्कुराता हूं जीता हूं
फिर तोड़ लिया जाता हूं,
कभी देवों के सिर पर,
कभी गोरी के जूड़े में सज जाता,
कभी अर्थी पर डल कर
अंतिम सफर तक साथ निभाता
गुलदस्तों में बंध कर,
जन्मदिन की बधाइयां समेटता
तोरण और बंदनवार बन कर
शोभा द्वार की बढ़ाता
नानाविध र॔गो का हूँ
नाना विध काम भी आता मैं
प्यार भी जगाता हूँ------
विरह भी बढ़ाता हूँ
ईश्वर के अंगों का उपमान
बन जाता हूँ,
दो दिन के जीवन की
इतनी सी आशा है,
सब के दिल की
कली खिला दूं
बस, इतनी सी अभिलाषा है।