पुरानी किताब
पुरानी किताब
एक रविवार को पुरानी चीजों में से एक किताब हाथ आई
लगा ऐसे जैसे बीते दिनों की तस्वीर सामने आई
पीले पड़ गये पन्नों पे धुंधली सी स्याही कुछ कह रही थी।
याद आने लगे वो दिन जब हम भी अमीर हुआ करते थे
भले मामूली कपड़े थे बदन पर
लेकिन बारिश के पानी में हमारे भी जहाज चला करते थे।
जब तोड़ते थे गुल्लक तो सबसे रईस महसूस करते थे
चारआनी, आठआनी, रुपये को भी बड़ी जायदाद समझते थे।
लोग हमें समझते थे छोटा मगर हम ऊँचा सोचते थे
उड़ती थी हमारी मछलियां आसमान में और पंछी पानी में तैरते थे।
मेघधनुष जमीन पर आ जाता था जब हम कापियों में रंग भरते थे
नीला, पीला, हरा लाल फर्क़ क्या करना, जो मन में आता वो रंग भरते थे।
खुद की सुबह, ख़ुद की शाम, खुद जिंदगी मस्ती में जीते थे
याद आने लगे वो दिन जब हम भी अमीर हुआ करते थे।
