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meeta luniwal

Inspirational

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meeta luniwal

Inspirational

पुनर्विवाह

पुनर्विवाह

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ऊषा आपनी माँ और 3 साल के बेटे के साथ एक सोसायटी में रहने आई थी अभी उसका इस शहर में ट्रांसवर हुआ था वो एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी।

उन्हें एक महीना ही हुआ था वो किसी को जानते भी नही थे बस आस पड़ोस में थोड़ी बातचीत थी वो नमस्ते और कैसे हो तक ही सीमित थी ।

एक दिन बगल वाले मकान में रहने वाली बबिता जी आई शादी का कार्ड देने तब ऊषा स्कूल गई हुई थी बबिता जी ने ऊषा की माँ सरोज को कार्ड देते हुए कहाँ "मेरी बेटी की शादी है आप लोगो को आना है।"

फिर सरोज ने चाय बनाई दोनों बातें करने लगी बबिता ने ऊषा के बारे में पूछा तब सरोज ने कहा "2साल 5 महीने हो गए ऊषा को विधवा हुए।उसके पति की हार्ट अटैक से मौत हुई बिजनेस में लाखों का नुकसान हुआ जिसका सदमा बर्दाश्त नही कर सका।" 

बबिता-"बहुत बुरा हुआ।" 

कुछ देर रुक कर फिर बोली बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ आप उसकी दूसरी शादी क्यो नही करा देती अभी उसकी उम्र ही क्या है फिर पहाड़ जैसी जिन्दगी कैसे काटेगी बुरा मत मानना आप कब तक रहेंगी।

सरोज-"नही नही हम ऐसा नही कर सकते हमारे समाज में, हमे समाज से बाहर कर देंगे।"

बबिता-"आप ये किस जमाने की बात कर रही है आपके ही समाज के एक सज्जन है 28 न. वाले तीसरी शादी करके बैठे है। आप तो अपनी बेटी का भविष्य देखिए और फिर बच्चे को भी तो बाप की जरूरत है।"


सरोज - "नही ऐसा नही हो सकता।"


बबिता ने कार्ड दिखाते हुए कहाँ "ये मेरी बेटी की नही बहु की शादी का कार्ड है जिसका मैं पुनर्विवाह करा रही हूँ वो मेरे लिए बेटी से बढ़कर है!

मेरे पति ,बेटा और पोती तीनो की कार दुर्घटना में मौत हो गई बहु भी साथ थी मगर ये मरते मरते बची है।तब मैंने इसे अपनी बेटी की तरह सम्भाला पूरे एक साल लगा उसे ठीक होने में इस हादसे को 3 साल हो गए है इस बीच बहु से वो बेटी बन गई में सास से उसकी माँ बन गई वो आज अपने पैरों पर खड़ी है कमाती है खुश है उसके दफ़्तर का ही है लड़का बहुत समझदार, सुलझा हुआ है दोनों खुश रहेगें।"

इतना सब सुन कर सरोज तो जैसे सुन ही हो गई।बबिता जी ने कहा अब में चलती हूँ मेरी बात पर विचार करना में सास होकर बहु की शादी कर सकती हूँ तो आपकी तो बेटी है...और हाँ शादी में जरूर आना।

बबिता तो चली गई मगर सरोज के लिए एक सवाल छोड़ गई।

मेरी तो बहु...आपकी बेटी है...

तभी ऊषा आ गई दोनों ने खाना खा लिया तब माँ ने ऊषा को अपने पास बिठाया और कहाँ तू शादी कर ले देख दो दिन बाद रविवार है तू शेखर को कह मुझसे आकर मिले मुझे तुम दोनों की शादी की बात करनी है(शेखर ऊषा का कोलॉज का दोस्त है जो ऊषा से शादी करना चाहता है वो भी टीचर ही है) उसकी भी रविवार की छुट्टी रहेगी ना तू ऐसा कर मुझे फोन लगाकर दे में ही बात करती हूँ 

ऊषा -"मगर माँ आप तो मना करती थी समाज..."

सरोज- "मुझे आज अपनी बेटी की खुशी देखनी है और कुछ नही तू फोन लगा!"

ऊषा ने फोन लगाकर सरोज को दिया, सरोज बात करते हुए अंदर चली गई...!!



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