पत्नी पीड़ा
पत्नी पीड़ा
काम की मारी मैं बेचारी
दुख का कारण जिम्मेदारी
सुबह सवेरे उठ जुट आऊँ
एक पल आराम ना पाऊँ
एक पैर पर मैं नाचँती जाऊँ
हरपल सबका हुकुम बजाऊँ
सबके नखरे और नाज उठाऊँ
फिर भी किसी को दया न आए
कैसी मेरी किस्मत फूटी हाय
पति-देव से जो करुं शिकायत
देखो फिर भी होती नहीं इनायत
एक अकेली जान कितने काम
सुबह दोपहर रात और शाम
एक दिन थक हार बैठ गई मैं
युूं ही पुरे परिवार से ऐठ गई मैं
पतिदेव ने बोला झटपट आके
रसोई घर में सारे बरतन झांके
तुने आज ये कैसी रची है माया
कुछ भी खाने को नहींं बनाया
पेट में चुहो ने बिगुल है बजाया
पत्नी ने बाहें कांख में दबाई
अकड़ कर उठी और गुर्राई
क्रोध में आकर बोली सुनो दुहाई
पत्नी से ऐसी क्या दुश्मनाई
सारा घर का काम करुं मैं
पल को भी ना आराम करुं में
कपड़े बरतन खाना साफ-सफाई
अपनी जिंदगी सारी यूँ ही खपाई
फिर भी कभी ना एहसान जताई
आज उब गई हूँ इस दिनचर्या से
मुक्ति दिलाओ इस दिनचर्या से
दुखी न होओ मेरी भार्या तुम
दुख दूर करेगे तेरे आर्या सुन
कहो तुम्हारी क्या मदद करुं
सब्जी कांटू आटा गुंधू गाजर कसुं
मिलजुल कर काम करेंगे हम तुम
एक तुम एक मैं मिल दो हो जाएगे
काम सारे अपने पल में निपट जाएगें
नहीं नहीं पत्नी बोली रुको मैं बताती
साथ जलेगेे जैसे दिया और बाती
एक और एक दो नहीं होते प्रियतम मेरे
एक और एक ग्यारह होते है प्रियतम मेरे।
