पतझड़
पतझड़
मैं कहती हूं
जीवन में पतझड़ आने दो
वे सब जो व्यर्थ है
झड़ झड़ जाने दो
मैं कहती हूं
जीवन में पतझड़ आने दो।
पतझड़ की हर आहट पर
क्यों द्वार बंद करते हो
पतझड़ की हर खटखट पर
क्यों खिड़कियों के परदे गिराते हो
पतझड़ के हर बुलावे को
कब तक नकारोगे
कब तक आँखें बंद करोगे
कबूतर बन
कब तक सिकोड़ोगे
हाथ पाँव कछुआ बन।
उठो स्वागत करो
मैं कहती हूं
जीवन में पतझड़ आने दो।
झड़ेगा नहीं तो नया कहां से
फूटेगा समझो इस बात को
पतझड़ नियति है
इस दुनिया की
हर चीज़ की।
