पतझड़
पतझड़
जीवन में डालों सी लचक चाहिए,
खिलती कलियों सी महक चाहिए।
जीवन का गुलदस्ता यूॅं ही नहीं महकता,
हर मुस्कुराहट को जरा कसक चाहिए।
सब्र में बसंत की बहार झूम कर आएगी,
धरती की चरण बादल चूम कर आएगी।
दुखों को लबों में सजाए रखना,
खुशियों की गलियाॅं तुम तक घूमकर आएगी।
रेगिस्तान में नागफनियॉं भी खिला करती हैं,
छद्म मरीचिकाऐं वहाॅं सहज मिला करती हैं।
लू के थपेड़ों को संभाले रखना,
इनसे भी अक्सर पत्तियाॅं हिला करती हैं।
संभाले पुष्प अब बिखरने लगे हैं,
जड़ों संग तना सिहरने लगे हैं।
किसकी दुआएं काम कर रही हैं,
पतझड़ में भी पत्तियाॅं निखरने लगी हैं।
खुशियों के पत्ते झरने लगे हैं,
तना-फल-फूल सब मरने लगे हैं।
ये फल मुझसे ही टूटकर गिरा था,
बीज अंकुरित होकर सॅंवरने लगे हैं।
