पतझड़
पतझड़
कभी हुआ करता था
बच्चे बुढ़े
युवक युवतियों
पशु पक्षियों
थके हारे
राहगीरों का
रैन बसेरा
किसी के लिए छांव
किसी के लिए ठांव
किसी के लिए गांव
जब तक रहे शसक्त
बदलते ही
मिजाज मौसम का
एक झटके में
सब कुछ शून्य हो गया
घने जुल्फों से
ठूंठ होने तक का
पनाहगाह विरान
पनाहगार स्तब्ध
देख
दुर्दशा
मुमकिन है
बारिश के बाद
फिर से
नव पल्लव
ले ले जगह
परंतु एक प्रश्न
उनका क्या ?
जो बेवजह
अलग कर दिये गये
अपनों से।