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Rajeshwar Mandal

Others

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Rajeshwar Mandal

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तन्हा

तन्हा

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बात न छेड़ फिर से उस जमाने की 

बहुत तन्हा हूं और मुझे परेशां न कर--२

खुशियां जो गुम हुई तुम्हारे जाने से

फिर कहां जी पाया किसी के आने से 

बात न छेड़ फिर से उस जमाने की .... ‌२


ये भी सच है की अब मय का आदी हूं

रास्ते जो मैंने चुना वह है बर्बादी की

वैसे भी बगैर तेरे कौन सा आबाद हूं मैं 

पर जमाना क्या जाने क्यों पीता हूं मैं 

बात न छेड़ फिर से उस जमाने की ... ‌२


रफ्ता रफ्ता शायद सूरज भी अब ढल जायेगा 

चर्चे जो सरेआम है वह भी बंद हो जाएगा 

ये भी जानता हूं कि किसी के बगैर न कोई मरता है

रस्में है तो वास्ते रस्म अदायगी लोग आहें भरता है

लाख कोशिशें की राज पर मैं अनसुना करता रहा 

नीलकंठ बन जहां से बेखबर मैं ज़हर पीता रहा 

बात न छेड़ फिर से उस जमाने की 

बहुत तन्हा हूं और मुझे परेशां न कर--२

         


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