पति का बटुआ
पति का बटुआ
गुजरे समय की बात हुई,
आज की नारी हो गई है,
स्वयं स्वावलंबीॉ,
वह पति का बटुआ तलाशती नहीं,
आत्मगौरवॉ,आत्मसम्मान से खुद के
कमाए पैसे से अपने हिस्से का
सुख दूसरे से वह बांटती नहीं।
गुजरा अब वह जमाना
जहाँ आश्रित थे लोग,
इस बटुवे के भरोसे,
जब से पत्नी ने खुद को
आत्मनिर्भर बनाया है,
घर की जिम्मेदारी का बोझ भी
अपने काँधे उठाया है,
अब नर और नारी
एक गाड़ी के दो पहिये हैं,
एक थम जाए तो दूसरे की
रफ्तार भी थम जाती है,
मुश्किल घड़ी में पत्नी ही
पति के काम आती है,
बटुआ चाहे पति का हो
पर अधिकार,
पत्नी का होता है,
क्योंकि पति को भी
नारी की क्षमताओं पर,
भरोसा अटूट होता है।