पथ का राही
पथ का राही
इन कठिन वीरान पहाड़ों पर
ज़िन्दगी थकेंगी नहीं चढ़ते-चढ़ते।
इस यात्रा का कोई अंत न सही
हम गिरेंगे नहीं थक कर चलते चलते
कोई हमसफर भी साथ तो आएगा
जीवन में कुछ हाथ आएगा बढ़ते बढ़ते
कभी किसी मंज़िल तक पहुँचेंगे
बिछ जाएँगे कहीं राह गढ़ते-गढ़ते
इस पथ में हम ही नहीं नए
और भी है छांव तकते तकते
पग निशा यहाँ किसके छप गये हैं
हम हारे नहीं इनको पढ़ते-पढ़ते।
