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Dr.Shree Prakash Yadav

Abstract

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Dr.Shree Prakash Yadav

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प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूर

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धन्य ! मैं प्रोफेसर

समाज का पथ प्रदर्शक

होने का स्वांग रचता रहा।


यथार्थ की दुनियाा से दूर,

अंतर्मन ही मन कोरोना योद्धा बनता रहा

कुुछ शब्द,कुुछ अर्थ के बल पर

तमाम प्रशस्ति–पत्र लेता रहा।


प्रवासी मजदूरों के प्रति

फेसबुक,व्हाट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम 

एवं कविताओं द्वारा,

संवेदना दर संवेदना प्रदर्शित करता रहा।


लॉकडाउन के बहाने,

संवैधानिक दायित्यों के निर्वहन में कैद रहा

 पाश्चात्य एवं भारतीय संस्कृतियों केे मध्य

संविधान एवं विज्ञान केे मर्म को भेदता रहा।


हे भारत के भाग्य विधाता

तू दर-दर भटकता रहा

रेल की पटरियों पर सोता रहा


मुझे माफ कर देना  

मैं कुछ भी तेरे हित ना कर सका।


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