प्रतिशोध
प्रतिशोध
बदले का चक्कर छोड़ें
बदला लेना भी एक नीति,
रण में अच्छी होती पर ।
जीवन में सुख पाना है तो,
बदले का चक्कर छोड़ें ।।
प्रतिशोध की ज्वाला हरदम
अपनी देह जलाती है ।
अपने सारे अरमानों को,
लोगों धूल चटाती है ।।
इस ज्वाला में विवेक जलकर,
काम नहीं कर पाता है।
बुद्धिहीन जन इस दुनिया में,
केवल ठोकर खाता है ।।
काम अक्ल से लो ना भभको,
दिल से अपना दिल जोड़ो।
जीवन में सुख पाना है तो,
बदले का चक्कर छोड़ो।।
मुर्दे गड़े उखाड़ो मत तुम ,
धूल दुश्मनी पर डालो ।
आस्तीन में अपने भी कुछ,
बैठे हैं देखो भालो ।।
किन किन से बदला लोगे तुम,
कितनी ताकत झोंकोगे।
कुत्ते भौंका ही करते हैं ,
क्या तुम उनपर भौंकोगे ।।
भूल जाओ हर वक्त लगाना,
नश्तर,चुप्पी मत तोड़ो ।
जीवन में सुख पाना है तो,
बदले का चक्कर छोड़ो ।।
अपराधी को माफ़ किया तो,
बैर आपसी मिट जाता ।
बदला लेने से तो दुश्मन,
नहीं करीब कभी आता।।
बैर बैर से कम कब होता ,
प्यार ही प्यार बढ़ता है ।
माफ़ी ने स्वभाव बदले हैं,
सिर पर प्यार चढ़ाता है।।
घी के दीये "अनन्त" जलेंगे,
सतपथ पर गाड़ी मोड़ो ।
जीवन में सुख पाना है तो,
बदले का चक्कर छोड़ो ।।