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Aarti Sirsat

Abstract Others

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Aarti Sirsat

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प्रकृति की प्रीत, सावन गीत

प्रकृति की प्रीत, सावन गीत

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मंद मंद चले पुरवाई

कोयल गाएं गीत...!

भोर सवेरे उठें 

मोर करें नित..!!


हरियाली कि चादर 

ओढ़ रही है धरा...!

लगें आज पृथ्वी का 

हर कोना हरा..!!


सूर्य कि किरण नाचे 

नदियों की लहरों पर...!

दिखें ऐसा जैसे नाचे 

नागिन पानी पर..!!


पेड़ों को ढके बैठी 

लताओं कि हार है...!

कुदरत की सुंदरता 

का यहीं सार है..!!


पत्तियों पर ओस के

मोती शोभित है...!

प्रकृति की प्रीत 

कितनी खूबसूरत है..!!


 


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