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Nidaafreen Khan

Abstract Others

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Nidaafreen Khan

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प्रकृति की आवाज

प्रकृति की आवाज

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सुंदर हरी घटा है छाई

मन मोहिनी प्रकृति की आवाज है आई।


अंधेरी रात में डूबे इस संसार को सूरज ने जगाया 

सुंदर फूलों ने चंचल हवा को महकाया।


जाग उठे पंछी गाते हुए अपना गाना 

बादलों को ही उन्होंने बनाया अपना आशियाना।


प्रकृति के अद्भुत रंग में मानो घुल गए है सभी

छाई है निराली सुबह खिल उठे है सभी।


शाम होने को है आई , सूरज की किरणें सुनहरी नजर आई।

समय का चक्र बीता 

अंधेरी रात में इस संसार को चांद ने चमकाया।


प्रकृति की पुकार में है मधुर संगीत 

हर व्यक्ति को अपने रंगो में घोल दे ऐसे 

मधुर गीत।


गगन की तरह लाल ,पीले रंगो में 

तो कभी काले सफेद बदलो में घेर देती है।


प्रकृति की लीला है न्यारी 

इसके हर पहलू में छुपी हुई सुंदरता है सबसे प्यारी। 


प्रकृति ने बिखेर दी है चारों तरफ हरियाली

प्रकृति की आवाज है सबसे अनोखी 

इसकी पुकार से खिल उठा है जहां, खिल उठे हैं सभी।



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