रिश्तों के अनोखे रंग।
रिश्तों के अनोखे रंग।
रिश्ते ,नाते यह मेल से बनते हैं
सुनहरी मालाओं के यह अनमोल मोती होते हैं ।
अटूट प्रेम , अटूट बंधन के यह किस्से बयान करते हैं ।
कभी खट्टे , कभी मीठे बोल कहने वाले यह लोग होते हैं ।
समय के साथ यह सुनहरी माला जीवन के मँझधार
मे टूटकर बिखर जाती हैं ।
अपने मतलब की सीमाओ मे झुलसते हुए
यह रिश्ते होते हैं
रिश्ते बनते हैं प्रेम से , खुशी से तभी तो वह अपने होते हैं
रेशमी मुलायम फूलों की तरह नाजुक डोर से बंधे होते हैं ।
जीवन के कठिन मोड पर न जाने कहा खो जाते हैं
जरूरत हो जब अपनों की तब अपने कहा काम आते हैं ।
झूठे अपनेपन की डोर से न जाने यह रिश्ते क्यों बंधे होते हैं ?
जरूरत के वक्त पराए अपने हो जाते हैं
और अपने तो खुद ही पराए बन जाते हैं ।
अपनों के दिए हुए घाव अक्सर चुभते हैं
विश्वास के टूटने पर रिश्ते डगमगा जाते हैं ।
ना अब पहले की तरह मेल होगा
ना किसीसे उम्मीद होगी क्यूंकी अब यह रिश्ते पतझड़
के बिटप की तरह बन गए हैं ।
ना अब उनमें कोई चाह हैं ना कोई रंग
बस रिश्तों की ठोकर ने कर दिया हैं
उन्हें बेरंग ।
