प्रकृति भक्त
प्रकृति भक्त
निष्काम भाव है, जिसका अर्पण।
प्रति फलित है, जिसका दर्शन।।
वो वसुंधरा की अमानत है।
प्रकृति पूज्य है, कहता सनातन।।
कवि प्रेयसी की, उपमा धरती।
धरा सौंदर्य का अलंकरण करती।।
ऐसी अनुपम छवि है न्यारी।
प्रकृति, जीव-जगत का पालन है करती।।
साधु साधना का स्थल थी।
वन्य जीव का सँरक्षण करती।।
जीवनदायिनी का वरदान लिये ।
प्रकृति, कर्तव्य मान निर्वाह है करती।।
माया है उसकी, अद्भुत, प्राणी।
सामंजस्य में ही है, सावधानी।।
विलक्षण शक्ति की धनी है।
प्रकृति, संग न कर तू छेड़खानी।।
वो ईश्वर पूज्य, समान है।
वो जान है, हम जहान है।।
विश्व जगत का, करती कल्याण है।
प्रकृति, भक्त मानव का प्रणाम है।।