प्रज्ज्वलित...
प्रज्ज्वलित...
ओ विक्टर, मेरे भाई !
तुम हर हाल में
अपनी आशा का
दीपक जलाए रखना !
अपनी बुलंदियों तक
पहुंचने के लिए
बस इस बात का
ख्याल रखना
कि वो दीपक
कभी बुझने न पाए... !!!
यूँ तो अड़चनें बहुत हैं
इस कर्मजीवन में ;
ओ विक्टर, मेरे भाई !
स्वाद लेना है तुम्हें
निश्चय ही, विजय का !!!
अगर दिल में
ईमान की पुकार हो
और धड़कनों में
अपने परिवार के लिए
सर्वश्रेष्ठ त्याग
करने का जज़्बा हो,
तो, ओ विक्टर, मेरे भाई !
तुम्हें कोई रोक नहीं सकता :
तुम्हें कोई टोक नहीं सकता !
बस तुम अपनी
आशा का दीपक जलाए रखना...